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मुक्तक

1 कभी मौसम कभी कुदरत कहर बनकर सताती है कभी  सरकार  के  कर्जे  कभी  कीमत  रुलाती है लहलहाती   महकती   बालियाँ भं  डार  भर  देती कहानी   फिर  हमें  होरी  कभी  संकर  बनाती  है।। 2 सुबह की  शुरुआत सरगी,  प्रीत के त्यौहार में  दुल्हन  बनी आज  सजनी, सज रही श्रृंगार में हर सुहागन की दुआएं, हर जनम का साथ हो  चांद    बैठा  चांदनी  में,  चांद   के  दीदार  में।। 3 आज आज़माने दो हर सितम जमाने को नूर आ गया मुहब्बत की समा जलाने को रूह को  इजाजत है  आज रूठ जाने की इश्क  हाजिर  हुआ है दो जहाँ मनाने को।। 4 हाथ जो  तुम्हारा मैं  थाम कर  चली होती जिन्दगी कुछ अलग  अंदाज में ढली होती रात   चाँदनी  की   आगोश  में  गुनगुनाती सुबह ओश में भीगी खिल रही कली होती।। 5 इश्क कब किसी से वजाहत मांगता है आंखों   में  ज़रा   मोहब्बत  मांगता है तेरी   धड़कन  में,  सांसों  में,  बातों में दो  पल  रहने  की  रियायत मांगता है।। 6 चाँदनी रात हम साहिलों पे मिले झांकते फलक से चाँद तारे खिले बात सच कह रही हूँ कसम की कसम रातभर आसमाँ देख जल-जल गिरे।। 7 ये मन भी कितना चंचल है पतंग सा उड़ता हर पल है अपनी धुन में बहता रहता  जैसे ये

नन्ही परी

नन्ही परी, गुड़ की डली, चाशनी तू प्यार की। रंगों भरी, नन्ही कली, खुशियां की बहार सी। चन्दा सा मुखड़ा, दिल का तू टुकड़ा। मेरे आंगन की, जन्नत का टुकड़ा। तेरी हंसी, मेरी खुशी,  बसंत की बयार सी। कोयल सी बोली, ख्वाबों की डोली। ममता की मूरत, सूरत की भोली। स्वाति की बूंद, गुनगुनी धूप, सावन की बौछार सी। नन्ही परी, गुड़ की डली, चाशनी तू प्यार की। रंगों भरी, नन्ही कली, खुशियां की बहार सी।

जिन्दगी के गीत गुनगुनाता चला गया!

जिन्दगी के गीत गुनगुनाता चला गया। हर रास्ते से हाथ मिलाता चला गया। जिन्दगी की कशमकश को नादानी में  हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया। मुश्किल हालात से, जीत और हार से हर खौफ से आँख मिलाता चला गया। कहीं नफरतें हैं तो कहीं बेरुखी है हर किसी से प्यार निभाता चला गया। ख़ुशी के झौंके है कहीं गम के साये  मुसाफिर हूं बस मुस्कुराता चला गया।

बांसुरी चली आओ राग ये बुलाते हैं!

इश्क की चलो कोई रस्म हम निभाते हैं। जिन्दगी चली आओ ख्वाब ये बुलाते हैं। प्रीत के बड़े नाजुक डोर से बधे वादे, सुर्ख सांझ साहिल पे आशियां बनाते हैं। अनकहे अनसुने से एहसास आंखों के बात वो अधूरे से रात दिन सताते हैं। और कुछ सिवा तेरे चाहता नहीं है दिल गूजरे हुए लम्हे याद बहुत आते हैं। बेसुरे अधूरे, सुर-ताल शब्द खाली से बांसुरी चली आओ राग ये बुलाते हैं।

मिट्टी

ना काटती हूँ, ना जलाती  हूँ, ना सुखाती हूँ  ना मिटाती  हूँ, किसी से ना करती हूँ भेदभाव मैं मिट्टी हूँ मिट्टी बनाती हूँ। धूप, जल, वायु, मिट्टी मिलते हैं, नूतन सृजन आरम्भ करते हैं, पशु-पक्षी, वनस्पति, मनुष्य देह, वस्त्र अलग-अलग पहनाती हूँ। सौ बार बनती सौ बार मिटती,  सत्य, साक्षात हूँ अविनश्वर हूँ रोती, हंसती,झुमती, थिरकती मौसमों संग चित्र बनाती हूँ।

सपने

ख्वाब मेरे आसमां तक यूं घुमाते हैं मुझे। बादलों में बीजुरी जैसे छुपाते हैं मुझे। आसमां से आ गिरे फिर सीढ़ियां पकड़े हुए, एक तारे की कहानी फिर सुनाते हैं मुझे। रंग बागों से समेटे आ खड़े हैं द्वार पर, जिन्दगी के रंग बनकर फिर लुभाते हैं मुझे। हार में भी दीप जैसे जगमगाते हौंसले,  नित्य स्वप्न सुधा बनकर सदा जगाते हैं मुझे।

ताकत जब हाथ बदलती है!

जब ताकत हाथ मिलाती है। जीवन को रोशन करती है। पर इसकी कीमत होती है। ताज और गद्दी देकर, मासूमियत छीनती है। तुमसे जुड़ी हर चीज को, सही व गलत में तोलती है। इन्द्रधनुसीय रंगों से, तुम्हारे लिए छाँटती है । श्वेत और काला रंग को, जीवन में उतार देती है। सिर पर चढ़ कर दाता बन, राज-पाट का वहम भरती है। ताकत का नसा... एक कूरूर बादशाह पैदा करती है। ताकत पे यूँ गुरूर न करो, ये सलतनत, ये बादशाही, सब हवा कर देती है। जब ताकत.... अपना हाथ बदलती है।

प्रेम नगर अति साँकरी!

प्रेम नगर अति साँकरी, कौन चित्त समझाय जा बैठा चौराह पर, मुझको भी भरमाय।। सावन साजन बिन हिया,जैसे नीरव डाल पिया बिना जीवन भया, कुरकुस की हो छाल।। साजन आए भोर में, बनके पंक्षी भोर मन आँगन की वेदना, साँझ भई चहुँ ओर।।  साँझ भई चहुँ ओर री,साजन बसे प्रदेश प्रेम छुड़ाए न छूटे, कौन कहें संदेश।। न लिखत न पढ़त जाय है, न भई कोई रीत किस विधि करूँ बखान री, प्रीत भई बस प्रीत।। #मीरा देवी 

सागर

धरती पर फैला हुआ, जलचर का संसार। सागर के  भीतर छिपा,  रत्नों का भंडार।। जब तृष्णा न बुझा सके, पानी चारों ओर। ये खारी नीर लहरें, तट पर करती शोर।। बूंदों से सागर बना, सागर बादल होय। धरती से दूर हो के, बूंदें बनके रोय।। दिन-रात तटों पर रहता, लहरों का अनुरोध। साहिल करती मौन से, तरंग का प्रतिरोध।। सागर उठा उमंग से,  पूनम वाली रात।   उतरा चांद लहरों में, कहने अपनी बात।। इतना विशाल हृदय है, सब करता स्वीकार। धरती के हर वस्तु पर, करता है उपकार

समय का पहिया

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मत गंवा आज को सपनों में, कल रहता आज के कर्मों में, समय का पहिया चलता रहता कहता एक ही बात निरंतर। अरे! चलते रहना जीवन भर! अच्छा-बुरा कुछ भी ना जाने, ऊॅंच नीच का भेद ना माने, तेरे जतन कुछ काम न आवे देखता रह जाएगा उम्रभर। अरे! चलते रहना जीवन भर! बरसात ऋतु से पहले किसान, युद्ध होने से पहले जवान, हार जीत का फैसला होगा हमारी आज की तैयारी पर। अरे! चलते रहना जीवन भर! पशु पक्षी के लिए सिर्फ जीवन, दिन-रात के जैसा मानव मन, कर्म से समय की सीमा तोड़ इतिहास की बोगी में बैठकर। अरे! चलते रहना जीवन भर!

तिरंगा

दिल्ली में  दहाड़े  तिरंगा,  सरहद  पर  महाकाल है। वीरों की  सौगात  तिरंगा,  इंकलाब  की  मशाल है। सनसन करते  हूंकार भरे,   जब वीरों के कदम बढ़े दुश्मन के दिल  छन्नी करते,  हिन्दुस्तान का लाल है। धर्म-जाति की राजनीति से,  जो चले देश को तोलने मात्रभूमि पर  मिटने  वाला,   देशभक्ति रंग  लाल है। सत्य अहिंसा और प्रेम का, रखवाला अजब-गजब है प्रत्यंचा   चढ़ा  गाण्डीव है,   प्रेम-पूरक  की  थाल  है। साजन के आँखों से गहरा, शीतल माँ के आँचल से वो लाल किले पर फहराता, रंगों का इंद्रजाल है।

रोशनी की कुंजी

विश्वास रोशनी की कूंजी है  आशाओं का पासवर्ड है  युद्ध चल रहा है हर वीर लड़ रहे हैं  माना कुछ चेहरे तारे बने हैं  कुछ नाम गुम हो गए हैं  हिम्मत और हौसले की कहानी है उम्मीद। ये युद्ध भी हो जायेंगा किताबी  जीत भी होगी नवाबी ये मायुसी और उदासी बीते दिनों की बात होगी। प्रकृति इमतहान ले रही है  शायद पाठ कोई समझा रही है। हम इसी की ही रचना है  जरा धर्य रखो शायद अपनी ही रचना में  सुधार कोई कर रही है।

दिल का दरवाजा

दिल का दरवाजा  खोलना हमारे बस में नहीं है, चाहे दरवाजे पर भगवान ही क्यों ना खड़े है। हमें पता नहीं होता ये कब और किसके लिए खुलेगा और क्यों । बड़ा अजीब होता है ये दिल का दरवाजा, ना सटल ना किवाड़  ना अकल की सुनता है । चाहे जितना जोर लगाओ ये नहीं खुलता है और जब बन्द करना होता है तो भी नहीं सुनता है।

आदिशक्ति मां

विश्व जननी अंबिका माँ, दिव्य का भंडार है भगवती के नाम सोलह, जप रहा संसार है।। प्राण भरती, प्यास हरती, सत्य का आधार है क्षीणता को दूर करती, शक्ति का संचार है।। आदिशक्ति अराधना से, शक्ति का संचय करो चेतना का जागरण हो, सत्य अनुसरण करो।। जागृत करो, निर्भय करो, कर्म निष्पादित करो निर्मल करो, सुन्दर करो, चित्त को विकसित करो।। सृष्टि सारी है तुम्हारी, साध्य को सम्मान दो  रंग भर दो तान भर दो, और हमको ज्ञान दो।। और मन में, और तन में, और मुझ में प्राण दो चरण में अपने शरण में, और मुझको स्थान दो।।

सफेद रंग

अमर  जिसका सुहाग शहीद की पत्नी कहलाती है वीरांगना।। विधवा का रंग सफेद है कहलाता उज्जवल उसे बनाता।। विधवा प्रेम तपस्वनी जाने क्यों कहते लोग उसे अभागिनी।। अकेले मां-बाप बेटे की विधवा परिवार का कुलदीप।। पहले एक परी अंधियारे से डरती आज हारता अंधियारा।। सतरंगी  जीवन को श्वेत रंग करता रंगों से मुक्त ।। (सायरी छंद)

हिन्दी का संसार

हिंदी  के   साहित्य   में,     ज्ञान   भरा     संसार  स्वर-व्यंजन  के  रूप  में,   शब्दों   की     झंकार।। वर्ण-वर्ग    की    गागरी,    शब्द  नये  छलकाय गद्य-पद्य  की   सभ्यता,  समृद्धि   इसे    बनाय।। शब्दों  के  भी  शब्द   है,   अर्थ   बनते  अनेक इतनी  सरल, सहज, सुगम, जान सके हर एक।। मात्र  भाषा  से  मिलता,   हमें  विश्व  का  ज्ञान विश्व   धरातल  पर  बनी, ‌‌हम  सबकी  पहचान।। निज  भाषा  में  छनकते,  शब्द  बड़े  अनमोल सुन  बन्धु  माँ  की  ममता,  मौसी  प्रेम न तोल।। जन-जन   के  साथ   रहती,   देवनागरी   वेश अनेकता    में   एकता,      एक   हमारा   देश। । हिन्द का स्वाभिमान है,  हम सबका अभिमान यूँ ही  सदा   बनी  रहे,   भारत  माँ  की   शान।।

कुर्सी के खातिर

कहना और सुनाना क्या है। गुज़रा दौर भुनाना क्या है। यूं गद्दी पर बैठे बैठे मन की बात बताना क्या है। रैलीयों पर रैलियां कर  जनता को बहकाना क्या है। नेता जी की बातों पर यूं लड़ना और लड़ाना क्या है। हर एक देश चले जनता से फिर यूं आंख दिखाना क्या है। इस कुर्सी के खातिर यूं तो  इंसानियत भुलाना क्या है।

गुरु-महिमा

              (1) ज्ञान का दीप जलाकर दीप की महिमा बताकर। इतना उजाला भर दिया जगमगाते रहें जीवनभर। आसमान में उड़ने लगे गुरु ज्ञान के पंख लगाकर। गहन अन्धकार को दूर करे ज्ञान रूपी जुगनू बनकर। श्रद्धा सुमन अर्पित करूं सदा आपके शुभ चरणों पर।           (2)  किस्मत के धागों में ज्ञान रूपी मोती पिरोकर, धरती अम्बर से जन्म-मृत्यु का बंधन तोड़कर, गुरु ज्ञान की  लौ रे बन्धु! अमर कर दे  बिन अमृत पीकर।।

जय हो गिरधारी

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हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। ग्वालबाल संग गैया चरावे मटकी फोड़ी माखन खावे, नन्द गाँव के माखन चोर अद्भुत लीला सबन दिखावे। तुम्हारी लीला पे वारी दुनिया सारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। गोपीयों की गोकुल नगरी कान्हा ने बजाये बासूरी, यमुना तट पर रास रचाये राधा संग की प्रेम सगाई। मीरा बन गयी, प्रेम पूजारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। भक्तों की तुम विनती सुनते एक पल में सारे दुःख हरते, दीनो सुदामा को तीनों लोक पांडवों की सदा रक्षा करते। सत्य के, तुम हो हितकारी। महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। अंधकार के भवसागर में ज्ञान का दीप जलाते, भट्टके अपने भक्तों को गीता का उपदेश सुनाते। जीवन का सार, गाथा तुम्हारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। हे कृष्ण मुरारी, जय हो गिरधारी महिमा तुम्हारी, सबसे में न्यारी। 

लाओ जी मेरे श्याम की पगड़ी

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               श्याम आए गोकुल में, धूम मची चारों ओर।                 बाबा   झूलाये  झुला,  मैया   खींचे   डोर। चले गोकुल के धाम, मथुरा के घनश्याम   झूमो नाचो गाओ आज, धन्य धन्य ये घड़ी।  पालना है चन्दन का,श्रृंगार हीरे मोती का हो लेके माखन मिश्री , जोगन द्वार खड़ी। लाओ जी मेरे श्याम की, जिसपे जड़ें हैं मोती छोटी सी मोरपंख की, लाल पीली पगड़ी। मैं तो वारी-वारी जाऊँ, बलि हारी-हारी ‌‌जाऊँ गिरधारी की नजर, उतारूँ घड़ी-घड़ी।।(1) जरा मटक-मटक, चले ठुमक-ठुमक सुन पैंजनी की धुन, कलियाँ भी चटकी। यमुना के तट पर, बाँसुरी की धुन पर सुध-बुध खोए सब, गोपियाँ भी भटकी। ग्वालबाल टोली संग, ग्वालिन को करें तंग छुप-छुप आके खाए,  माखन की मटकी। आगे-आगे हैं कन्हैया, पीछे-पीछे चले गैया अद्भुत छटा देखके, साँझ बेला अटकी।।(2)

नागपंचमी

श्रावण की शुक्ल पक्ष पंचमी  "नाग पंचमी" दीप-धूप, चंदन, रोली  और पूजा की थाली पानी और चढ़ावे दूध और श्रद्धा के फूल, खिली-खिली धूप नवेली अभी-अभी है जागी, नागदेव के पूजन को आई भक्तों की टोली, प्रकृति और भक्तों का मनमोहक ये रूप, नागदेव के दर्शन पाकर जीवन हुआ संपूर्ण।

चलो देश को राम बना लें

चलो देश को राम बना लें अपना-अपना भगवान बना लें राष्ट्रहित है पूजा हमारी हम तारे सूरज हिन्दूसतान बना लें चलो देश को राम बना लें अपना-अपना भगवान बना लें।। शहीदों की ये कुर्बानी शूरवीरों की है निशानी आजादी के दीवानों का सपनों सा हिंदुस्तान बना लें चलो देश को राम बना लें अपना-अपना भगवान बना रहे।। हर धर्म-जाति से पहले हम एक आंगन के बच्चे चलो वर्दी वालों के जैसे तिरंगे को पहचान बना लें  चलो देश को राम बना लें अपना-अपना भगवान बना लें।। रक्त नहीं संकल्प चाहिए हिफाजत की सौगंध चाहिए वीरों के पथपर चलकर  विजय-हिन्द का अभियान बना लें चलो देश को राम बना लें अपना-अपना भगवान बना लें।।

सावन

सावन आए बरखा लाए, सबके मन को खूब लुभाए। रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी खूब नहाई चिड़िया रानी, घर आँगन भी खूब भीगाए। सबके मन को खूब लुभाए। बारिश की बूँदों ने पत्तों से मिलके, गीत सुहाने खूब सुनाए। सबके मन को खूब लुभाए। कोयल की कुहु-कुहु पपीहा की पीहू-पीहू, नाचे मोर पंख फैलाए। सबके मन को खूब लुभाए। भीग गई है धरती सारी छाई चारों ओर हरियाली देखो इन्द्रधनुष भी आए। सबके मन को खूब लुभाए। खेल रहे हैं बच्चे सारे बादल काका ताना मारे  बिजली हमको बहुत डराए। सबके मन को खुब लुभाए।

हरियाली तीज

सावन में होके मगन चली रे! सखी, झूला झूलन चली रे! रिमझिम सावन में हरियाली तीज पूजन चली रे सखी, झूला झूलन चली रे! मेहंदी वाली हाथों में हरी-हरी चुड़ियां पहन चली रे सखी, झूला झूलन चली रे! हरी-हरी साड़ी में करके सोला श्रृंगार दुल्हन बनी रे सखी, झूला झूलन चली रे!

जिन्दगी बेमिसाल है

ज़िन्दगी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिए। दार्शनिक होना ठीक है पर हर बार कुआँ खोदना फिर उसी में गिरजाना कहाँ कि अकलमंदी है । ज़िन्दगी है बेबाक है, बेखुदी है, बेकुफी है पर है  तो अपनी  हाँ  बिलकुल बेजोड़ है। जीवन में जो भी आयें खुशी हो या गम अपने-पराये प्रतिद्वंद्वी हो या मित्र उन्हें जीएं, महसूस करें  उनका भरपूर आनंद उठायें क्यों कि ये सब... कुछ समय के लिए हैं चुनौतीपूर्ण हैं  हमें जूझने के लिए मजबूर करते हैं। कुछ तो इतना थका भी देते हैं  लगता है कि.. अब इसके आगे कुछ भी नहीं है। पर हमेशा याद रखें जो इस पल में है वो अगले पल में बदल जायेगा जो आयेगा वो एक नई शुरुआत होगी एक नई बात होगी एक नई कहानी के साथ नए अहसास होंगे ज़िन्दगी लम्बी नहींं बड़ी होनी चाहिए।

समय

तू निराश न हो हौसला रख ये जो वक्त है इसे बीत जाने का हुनर आता है। बस तु अपने कदम छोटे कर ले जरा धीरे धीरे चल छाई है जो काली बदरा इसे छट जाने दे सूरज की किरणों को भला कोई रोक पाया है ये जो वक्त है इसे बीत जाने का हुनर आता है।

गिद्ध

आसमान में उड़ने वाले गिद्ध सांसों के थमने का इंतजार तो करते हैं। ये जो जमीन पर झपट्टने वाले गिद्ध हैं ना, इनके बारे में कुछ कहने से पहले शब्द भी दम तोड़ देते हैं। इनकी पकड़ लकड़बग्घे के झपट से भी मजबूत है, शिकार के मिलते ही नोचना शुरू करते हैं। सांसों के रहते ही, बोटी बोटी नोचते हैं। यह सिलसिला पंचतत्व में विलीन होने के बाद भी जारी रखते हैं। किसी की सांसें अब भी बच गई हो तो, गिद्ध कहते हैं। खुश रहो तुम जिंदा हो, सवाल पूछने का हक तो मरे हुए को भी नहीं देते हैं। क्योंकि… गलती तुम दोनों की है।

हमसफर

हमसफर मेरे हमसफर साथ तेरा यूँ ही उम्र भर।। तू आकाश नीला मैं चंचल सी हवा, तू बदरा पिया मैं प्यासी धरा। यूँ ही साथ रहें हम उम्र भर। हमसफर मेरे हमसफर।। तुम बाग का हर रंग मैं तितली बेरंग, मेरे सनम तेरे संग जीवन का हर रंग। इन्द्रधनुषी हो गई डगर। हमसफर मेरे हमसफर।। मैं ओश की बूूँद तुम सूर्य तारा, मैं जुगनू तुम अंधियारा, मैं जल की धारा तुम हो किनारा। बहती रहूँ यूँ ही बेखबर। हमसफर मेरे हमसफर।। साथ तेरा यूँ ही उम्र भर।।

ए वतन मेरे

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वतन है तो हम हैं वरना कुछ भी नहीं! माँ के आँचल से शीतल महबूब के ऑंखों से गहरा ए वतन मेरे, ए वतन मेरे! मैं सात समंदर पार से, सब छोड़ के, लौट आती हूँ; पास तेरे, ए वतन मेरे। कुछ अधूरी सी आँखों में, दिल में, रह जाती है; प्यास तेरे, ए वतन मेरे। कितने रंग और रूप यहाँ, भाषा और बोलियाँ खुब यहाँ,  प्रेम का सागर; पास तेरे, ए वतन मेरे। दादी-नानी की बातों में,  चाँद-तारों वाली रातों में,  बुनें सपने सुहाने, साथ तेरे, ए वतन मेरे। मखमल सी हरियाली, शतरंगी चूनर लहराती, ये बगीयाँ, नजारे; सब रास तेरे, ए वतन मेरे।  रंग बिरंगे फूल का,  ये देश गुलीस्ताँ, सारे जग से प्यारा, मेरा हिन्दूस्ताँ, जीवन के रंग में; अहसास तेरे, ए वतन मेरे। इतिहास है गौरवशाली, जन्मभूमि है वीरों की मेरा हर जन्म; मेरी हर साँस तेरे, ए वतन मेरे। कान्हा की बंसी, डाली सावन की,  हर ताल पे; सात सूर के साज तेरे; ए वतन मेरे।  आबाद रहे खुशहाल रहे, सारे जहाँ में तू बेमिसाल रहे, तेरी सदा जयकार हो, सूरज-चाँद मेरे,  ए वतन मेरे। ए वतन मेरे, ए वतन मेरे।।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। हर कुर्बानी हर शहादत याद रखेंगे, नेताओं की नेता नगरी में अन्नदाता की पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, सिंहासन पर बैठी सरकार सुनो हम अन्नदाता के अँसुपात याद रखेंगे। राजपथ झाँकियाँ और अन्नदाता की रैली गणतंत्रदिवस इक्कीस की प्रभात याद रखेंगे। जब रद्दी हुई दौलत मेरी चारों पहर के वो हालात याद रखेंगे। राम जी की गद्दी, मुद्दा तीन सौ सतर राजनीति के तराजू से निजात याद रखेंगे। सुनसान सड़कों पर मीलों चलते लोग पाँव तले छालों की अधरात याद रखेंगे। तालाबंदी, दो गज की दूरी, ढका मुखड़ा बीस की टीस का आघात याद रखेंगे। बेरोजगारी, महंगाई, जनता का विरोध आत्मनिर्भरता से मन की बात याद रखेंगे। जिस काले चश्मे से सब चंगा दिखता है सरकार आपकी हर करामात याद रखेंगे। सख्त नियम से कानून जो लागू हुए  सरकार जल्दबाजी की सौगात याद रखेंगे । आवाज बुलंद भी करेंगे और सवाल भी पूछगें सरकार आपके ख़यालात याद रखेंगे। हमारे हर सवाल हर विरोध पर आपका इतिहास की खैरात याद रखेंगे सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, 

मदारी

एक मदारी, बड़ा खिलाड़ी डुगडुगी बजाके खेल दिखाए उसके इशारे पे नाची बंदरिया तमाशा देखे सारी नगरिया। बातों का जादूगर सपनों का सौदागर अपनी धुन पर नाच नचाए अपने सूर वो आप सुनाए हुआ अंधेरा उठाकर झोला दिनभर का खिलाड़ी  घर लौटा थका मदारी।।

एक शिकारी बड़ा सयाना!

एक शिकारी बड़ा सयाना डाले भ्रम का दाना, जाल ऐसा डाला फस गया जंगल सारा, मची हुई है भगदड़ हो रहा है दंगल, हो गया है व्यापार बड़ा डर का कारोबार खड़ा फायदे की है साझेदारी  करे यहाँ सभी होशियारी, क्या कबूतर क्या शिकारी बचने की है पूरी तैयारी,  भूला दी है दुनियादारी सबको अपनी जान है प्यारी, ढुंढ रहे हैं सभी अनाड़ी यहाँ सभी हैं खिलाड़ी, विभिन्न-विभिन्न जाल बदले भाँति-भाँति की चाल चले, मनसुबों का नहीं ठिकाना ये शिकारी बड़ा सयाना।।