ए वतन मेरे


वतन है तो हम हैं वरना कुछ भी नहीं!
माँ के आँचल से शीतल
महबूब के ऑंखों से गहरा
ए वतन मेरे, ए वतन मेरे!

मैं सात समंदर
पार से, सब छोड़ के,
लौट आती हूँ; पास तेरे, ए वतन मेरे।
कुछ अधूरी सी
आँखों में, दिल में,
रह जाती है; प्यास तेरे, ए वतन मेरे।
कितने रंग और रूप यहाँ,
भाषा और बोलियाँ खुब यहाँ, 
प्रेम का सागर; पास तेरे, ए वतन मेरे।
दादी-नानी की बातों में, 
चाँद-तारों वाली रातों में, 
बुनें सपने सुहाने, साथ तेरे, ए वतन मेरे।
मखमल सी हरियाली,
शतरंगी चूनर लहराती,
ये बगीयाँ, नजारे; सब रास तेरे, ए वतन मेरे। 
रंग बिरंगे फूल का, 
ये देश गुलीस्ताँ,
सारे जग से प्यारा,
मेरा हिन्दूस्ताँ,
जीवन के रंग में; अहसास तेरे, ए वतन मेरे।
इतिहास है गौरवशाली,
जन्मभूमि है वीरों की
मेरा हर जन्म; मेरी हर साँस तेरे, ए वतन मेरे।
कान्हा की बंसी,
डाली सावन की, 
हर ताल पे; सात सूर के साज तेरे; ए वतन मेरे। 
आबाद रहे खुशहाल रहे,
सारे जहाँ में तू बेमिसाल रहे,
तेरी सदा जयकार हो, सूरज-चाँद मेरे, 
ए वतन मेरे। ए वतन मेरे, ए वतन मेरे।।

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