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बदलती राजनीति

''बदलते राजनीति से मेरी कलम भी मज़बूर हुईं।।   ना  चाहते हुए भी मेरे विचारों में शामिल हुई''।।   राजनीति बदल रही है..   हर आँख में मटक रही है..   सपने सिंहासन के दिखा रही है।   सच झुठ की खिचड़ी में..   मसालों  का मुआयना कर रही है।   राजनीति बदल रही है।   हर कोई शामिल है   जीत की दौड़ में,   सम्भलो ए सिंहासन के महारथी   तुम्हारी हर चाल पे नजर रखी है।   राजनीति बदल रही है।   बदलाव की तस्वीर लिए   गली, मोहल्ले घूम रही है।   खेल ना खेलो तुम.   ये भारत की राजनीति है।   तेरे हर वादे का हिसाब रखती है।   राजनीति बदल रही है।   छोड़ पूरानी रित...   नये पैंतरे अपना रही है।   आकर चुनावी अखाड़े में   तुझे आज़मा रही है।   लोकतंत्र की नींव पर   राजतिलक कर रही है।   राजनीति बदल रही है।   हर आँखें में मटक रही है।                                      # देवी

कुंभ दर्शन

कुंभ कुंभ ये है. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ . कुंम्म्मभ। संगम तट पर प्रयागराज में, ये है कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंम्म्मभ। श्रिवेणी में शाही स्नान. देखता पूरा ब्रह्मांड, अदभूत नज़ारे. भस्म रमाये, भक्तों का ये भव्य रूप. देख भगवन अमृत बरसाए, हर हर महादेव ...... ये है भक्तों का... कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंम्म्मभ। ध्वजा, पालकी, ढोल़, नगाड़े, अस्त्र- शस्त्र. और ज़यज़यकारे, भक्ति भाव की छटा बिख़ेर . त्रिवेणी के घाट पे, हर हर महादेव........ ये है साधु- संतों का... कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंम्म्मभ। गंगा,यमुना और सरस्वती में . आस्था की ढुबकी लगाने , चले आए आदिकाल से. कल्पवास में. आध्यात्मिक पर्व मनाने, धरती पे ये भव्य नजाऱे. विभिन्नता में एकता के, हर हर महादेव.......  ये है मानवता का... कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंभ कुंभ कुंभ. कुंम्म्मभ। भारत दर्शन. जीव़न दर्शन . ये है ब्रह्मांड दर्शन, कह़ी नहीं. ये है कुंभ दर्शन. ये कुंभ दर्शन है. भारत दर्शन, हर हर महा

कुंभ

त्रिवेणी, माधव, आलोक, शंकरी, श्री पढ़े हनुमान जी। मैं नागवस की नवग्रह मंदिर, प्रिय भूमि श्री राम की । मैं भजन हुंँ मंदिरों की, भक्तों की पूकार हुँँ। श्रिवेणी के तट पर शोभित, मैं तीर्थों में तीर्थराज हुँ। मैं पावन प्रयाग हुँ मैं पावन प्रयाग हुँ।                                                          ''देवी''

पगडन्डी

माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो, मुझे जीवन का मतलब बतला दो, कहती हो मेरे जिगर का टुकड़ा हो पापा की लाडली हो फिर पराये धन का मतलब समझा दो, माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो, एक नह़ि दो घरों की रोशनी हूँ कहती हो इस जहाँ कि रचियता हो फिर च़िराग का मतलब समझा दो, माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो, बेटी,बहना,बहु,दादी,नानी,माँ जाने कितने नाम ह़ै माँ बस मुझे मेरे नाम से अवगत् करा दो, माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो, पंखों से नही हौसलोँ से उड़ती हूँ, एक पल में दुनिया जीत लेने का जज्ब़ा रखती हूँ, हा माँ मुझे फिर घुघ़ट का अर्थ समझा दो, माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो , गिरने से पहले सम्भंला सिखा दो, मुझे मुझ से मुखाँतिब करा दो, मेरी खुद से जान पहचान करा दो, माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो , मुझे जीवन का मतलब बतला दो , माँ मुझे पगडन्डी पे चलना सिखला दो ,                                                #देवी