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होली

लाल ना हरा रंग मोहे भाये प्रेम रंग मोहे रंग दे तु अपने ही रंग में साँवरिया, धोबिया धोये चाहे सारी उमरिया तू रंग जा!हाँ तू रंग जा पिया मोरि कोरी कोरी चुनरिया, कोरे-कोरे कलश में मिलाये रंग केशरिया होरी खेलन आयौ रे श्याम रंग-बिरेंगी हुई गयी आज बदरिया,   भर पिचकारी ऐसी मारी कि भीज गई राधा प्यारी हो हँस-हँस राधा संग... होरी खेले गिरधारी, गोपियों संग होरी खेले रे रशिया कि होली खेले रे साँवरिया।। होली है.........                          # देवी

प्रीत

वंसत को ऋतू राज माना जाता हैं इन दिनों मुख्य पाँच तत्व (जल, वायु, आकाश, अग्नि एवम धरती ) संतुलित अवस्था में होते हैं और इनका ऐसा व्यवहार प्रकृति को सुंदर एवम मन मोहक बनाता हैं अर्थात इन दिनों पतझड़ खत्म होते ही पेड़ों पर नयी शाखायें जन्म लेती हैं, जो प्राकृतिक सुन्दरता को और अधिक मनमोहक कर देती हैं। उन नयी शाखाओं की नन्ही कली और पत्तियों को देखकर मन में कई भाव उमड़ते है। इन नन्ही कोमल पत्तियों को छूने मात्र से मूरझाने का भय, मन को  व्याकुल कर जाता है। उनकी कोमलता, उनका सौन्दर्य देखते बनता है।     ठीक वैसे ही जब प्रेमी आपस में मिलते है उनके मन में भी कई नयी और कोमल, भाव,विचार प्रकट होते है, यहाँ तक की उनका व्यवहार बहुत सरल और सहज होता है। दोनों के बीच का संतुलन एक दूसरे को उनकी क्षमताओं और सीमाओं से कहीं ऊपर उठा देता है, दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित रहते है। एक अदभूत अनुभव में खो जाते है। जो जीवन को उमंग से भर देता है और मन के तार को छेड़ता है समंदर की लहरों की भांति छलक उठता है प्रेम,     ''प्रेम को पढ़ना है तो प्रेम में डूबना पड़ेगा प