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हम भारतवासी!

कैसी पहचान तुम्हारी कैसे तुम भारतवासी भेद भाव का चश्मा चढ़ाए क्या तुम हो भारतवासी। सरहद के आशिक को देश के सिवा कुछ याद कहाँ माटी के लाल को अन्न के सिवा कुछ याद कहाँ शब्दों में जहर कैसा है;ओ मृदुभाषी कैसे तुम भारतवासी। पूरब के हो या पश्चिम के उत्तर के हो या दक्षिण के रहते हो सब साथ साथ लड़ते हो दुश्मन के जैसे बताओ कहाँ के तुम निवासी कैसे तुम भारतवासी। हम तुम एक हो जाएँ एक बाग के फूल हो जाएँ नफ़रत और भेदभाव को भूलकर हम सब भारतवासी हो जाएँ सत्य, प्रेम और अहिंसा के हम पूजारी हम सब हैं भारत के वासी। गुलाबों का गुलिस्ताँ बनाएँ खुशहाल रहे ऐसी दुनियाँ बनाएँ आत्मनिर्भर और विश्वगुरू हो एक ऐसा हिन्दूस्ताँ बनाएँ यही हमारा काबा यही है काशी हम सब हैं भारतवासी।

हिन्दी के महासागर

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हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं। शब्दों के हैं शब्द कई, अर्थों के भी अर्थ निकलते। स्वर व्यंजनों के रूप में, गांव की बोली समेटे। जो भी गाएं व लिखें,  हिन्दी में सुनाएं। गद्य और पद्य की विधा, समृद्धि इसको बनाए। सरल, सहज और सुगमता  सब ज्ञान-आनंद पाए। देवनागरी लिपि में, गुण इसके गाएं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, ये है अभिमान हमारा। यूं ही जगमगाता रहे, हिन्दी का सूरज तारा। हम सब की ये चाहत है, भारत-वर्ष पाएं। हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं।

भारत भूमि

15अगस्त 1947 की रात को भारत देश नहीं भारत के लोग आजाद हुए थे। देश और देशवासियों को कुछ भी कहने और कुछ भी करने के लिए,  साथ ही आजाद हुए थे सिर्फ अपने भले के लिए।