मिट्टी

ना काटती हूँ, ना जलाती हूँ,
ना सुखाती हूँ  ना मिटाती हूँ,
किसी से ना करती हूँ भेदभाव
मैं मिट्टी हूँ मिट्टी बनाती हूँ।

धूप, जल, वायु, मिट्टी मिलते हैं,
नूतन सृजन आरम्भ करते हैं,
पशु-पक्षी, वनस्पति, मनुष्य देह,
वस्त्र अलग-अलग पहनाती हूँ।

सौ बार बनती सौ बार मिटती, 
सत्य, साक्षात हूँ अविनश्वर हूँ
रोती, हंसती,झुमती, थिरकती
मौसमों संग चित्र बनाती हूँ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सरस्वती माँ शारदे

जय गणपति जय जय गणनायक!

अन्नदाता