अन्नदाता

ऐसा भी एक दिन था,
जब देश के खातिर
भुखे ने भी उपवास रखा,
देश के पहले नागरिक ने
अपने आँगन में हल चलाया,
तब लेकर हरित क्रांति की मिसाल
किसान ने धरती से सोना उगाया,
देश को अन्न का भंडार दिया,
भूख से नाता तोड़ दिया,
ये किसान है 
माटी का लाल है
दो धारी तलवार है
कर ना साजिशें
नीति बीच की।
सत्य है  शाश्वत है
ये वार पे वार सब बेकार है।
देश का स्तंभ,
इसे मौसमों से ना डरा,
वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद,
हेमंत और शिशिर,
दिन-रात, खेत-खलयान,
खुला आसमान,
सब हैं इसके सखा।
हर गीत में, प्रीत में
बसी है इसकी कथा।
ये है  मेरा ''अन्नदाता''

"अन्नदाता सुखी भव" "अन्नदाता सुखी भव"               "अन्नदाता सुखी भव"

8/12/20 "किसान आंदोलन "

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