संदेश

ए वतन मेरे

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वतन है तो हम हैं वरना कुछ भी नहीं! माँ के आँचल से शीतल महबूब के ऑंखों से गहरा ए वतन मेरे, ए वतन मेरे! मैं सात समंदर पार से, सब छोड़ के, लौट आती हूँ; पास तेरे, ए वतन मेरे। कुछ अधूरी सी आँखों में, दिल में, रह जाती है; प्यास तेरे, ए वतन मेरे। कितने रंग और रूप यहाँ, भाषा और बोलियाँ खुब यहाँ,  प्रेम का सागर; पास तेरे, ए वतन मेरे। दादी-नानी की बातों में,  चाँद-तारों वाली रातों में,  बुनें सपने सुहाने, साथ तेरे, ए वतन मेरे। मखमल सी हरियाली, शतरंगी चूनर लहराती, ये बगीयाँ, नजारे; सब रास तेरे, ए वतन मेरे।  रंग बिरंगे फूल का,  ये देश गुलीस्ताँ, सारे जग से प्यारा, मेरा हिन्दूस्ताँ, जीवन के रंग में; अहसास तेरे, ए वतन मेरे। इतिहास है गौरवशाली, जन्मभूमि है वीरों की मेरा हर जन्म; मेरी हर साँस तेरे, ए वतन मेरे। कान्हा की बंसी, डाली सावन की,  हर ताल पे; सात सूर के साज तेरे; ए वतन मेरे।  आबाद रहे खुशहाल रहे, सारे जहाँ में तू बेमिसाल रहे, तेरी सदा जयकार हो, सूरज-चाँद मेरे,  ए वतन मेरे। ए वतन मेरे, ए वतन मेरे।।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे।

सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। हर कुर्बानी हर शहादत याद रखेंगे, नेताओं की नेता नगरी में अन्नदाता की पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, सिंहासन पर बैठी सरकार सुनो हम अन्नदाता के अँसुपात याद रखेंगे। राजपथ झाँकियाँ और अन्नदाता की रैली गणतंत्रदिवस इक्कीस की प्रभात याद रखेंगे। जब रद्दी हुई दौलत मेरी चारों पहर के वो हालात याद रखेंगे। राम जी की गद्दी, मुद्दा तीन सौ सतर राजनीति के तराजू से निजात याद रखेंगे। सुनसान सड़कों पर मीलों चलते लोग पाँव तले छालों की अधरात याद रखेंगे। तालाबंदी, दो गज की दूरी, ढका मुखड़ा बीस की टीस का आघात याद रखेंगे। बेरोजगारी, महंगाई, जनता का विरोध आत्मनिर्भरता से मन की बात याद रखेंगे। जिस काले चश्मे से सब चंगा दिखता है सरकार आपकी हर करामात याद रखेंगे। सख्त नियम से कानून जो लागू हुए  सरकार जल्दबाजी की सौगात याद रखेंगे । आवाज बुलंद भी करेंगे और सवाल भी पूछगें सरकार आपके ख़यालात याद रखेंगे। हमारे हर सवाल हर विरोध पर आपका इतिहास की खैरात याद रखेंगे सरकार आपकी बेरूखी याद रखेंगे। पुस की वो चाँदनी रात याद रखेंगे, 

मदारी

एक मदारी, बड़ा खिलाड़ी डुगडुगी बजाके खेल दिखाए उसके इशारे पे नाची बंदरिया तमाशा देखे सारी नगरिया। बातों का जादूगर सपनों का सौदागर अपनी धुन पर नाच नचाए अपने सूर वो आप सुनाए हुआ अंधेरा उठाकर झोला दिनभर का खिलाड़ी  घर लौटा थका मदारी।।

एक शिकारी बड़ा सयाना!

एक शिकारी बड़ा सयाना डाले भ्रम का दाना, जाल ऐसा डाला फस गया जंगल सारा, मची हुई है भगदड़ हो रहा है दंगल, हो गया है व्यापार बड़ा डर का कारोबार खड़ा फायदे की है साझेदारी  करे यहाँ सभी होशियारी, क्या कबूतर क्या शिकारी बचने की है पूरी तैयारी,  भूला दी है दुनियादारी सबको अपनी जान है प्यारी, ढुंढ रहे हैं सभी अनाड़ी यहाँ सभी हैं खिलाड़ी, विभिन्न-विभिन्न जाल बदले भाँति-भाँति की चाल चले, मनसुबों का नहीं ठिकाना ये शिकारी बड़ा सयाना।।

अन्नदाता

ऐसा भी एक दिन था, जब देश के खातिर भुखे ने भी उपवास रखा, देश के पहले नागरिक ने अपने आँगन में हल चलाया, तब लेकर हरित क्रांति की मिसाल किसान ने धरती से सोना उगाया, देश को अन्न का भंडार दिया, भूख से नाता तोड़ दिया, ये किसान है  माटी का लाल है दो धारी तलवार है कर ना साजिशें नीति बीच की। सत्य है  शाश्वत है ये वार पे वार सब बेकार है। देश का स्तंभ, इसे मौसमों से ना डरा, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर, दिन-रात, खेत-खलयान, खुला आसमान, सब हैं इसके सखा। हर गीत में, प्रीत में बसी है इसकी कथा। ये है  मेरा ''अन्नदाता'' "अन्नदाता सुखी भव" "अन्नदाता सुखी भव"               "अन्नदाता सुखी भव" 8/12/20 "किसान आंदोलन "

दीप

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एक दीप रोशनी से भरा, दसों दिशाँ प्रकाशित करे। हर्ष और उल्लास से, नव जीवन प्रतिष्ठित करे। एक दीप उमंग से भरा, भक्ति में रंगा जो अंतर्मन तलक, निर्भय और जागृति करे। अंधकार में, आशा की किरणें उम्मीद और विश्वास की, शक्ति सदा प्रज्वलित करे। समय के  चक्र में, घटित घटनाओं में मानव के हृदय को, संताप में आनंदित करे। मेरा कोटी कोटी नमन उस दीप को उस वीर को जो जन कल्याण में अपना सर्व जीवन समर्पित करे। एक दीप रोशनी से भरा, दसों दिशाँ प्रकाशित करे। हर्ष और उल्लास से, नव जीवन प्रतिष्ठित करे।

हे ज्योतिमय संत

हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल, पतंग अंधकार में भटकता, घट-घट तुमको ढूंढता, ये बैरागी मन। अज्ञानता भरी छाया, शूल से घायल काया, नश्वर अंतर्मन। अब प्रभात पट खोलो, अंध-उर प्रकाश भर दो, हे प्रभु दयावंत। हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल पतंग।