हिन्दी के महासागर
हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं। शब्दों के हैं शब्द कई, अर्थों के भी अर्थ निकलते। स्वर व्यंजनों के रूप में, गांव की बोली समेटे। जो भी गाएं व लिखें, हिन्दी में सुनाएं। गद्य और पद्य की विधा, समृद्धि इसको बनाए। सरल, सहज और सुगमता सब ज्ञान-आनंद पाए। देवनागरी लिपि में, गुण इसके गाएं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, ये है अभिमान हमारा। यूं ही जगमगाता रहे, हिन्दी का सूरज तारा। हम सब की ये चाहत है, भारत-वर्ष पाएं। हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं।