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हिन्दी के महासागर

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हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं। शब्दों के हैं शब्द कई, अर्थों के भी अर्थ निकलते। स्वर व्यंजनों के रूप में, गांव की बोली समेटे। जो भी गाएं व लिखें,  हिन्दी में सुनाएं। गद्य और पद्य की विधा, समृद्धि इसको बनाए। सरल, सहज और सुगमता  सब ज्ञान-आनंद पाए। देवनागरी लिपि में, गुण इसके गाएं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, ये है अभिमान हमारा। यूं ही जगमगाता रहे, हिन्दी का सूरज तारा। हम सब की ये चाहत है, भारत-वर्ष पाएं। हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं।

गीत मोहब्बतों के भी लिखे जायेंगे।

यूँ ना बाँटो नफ़रतों की पर्चीयां,  गीत मोहब्बतों के भी लिखे जायेंगे। सितम चाहे कितने, भी कर लो, फूलों की ज़िद है, खिल ही जायेंगे। इतिहास जब भी, पढ़ा जाएगा, दर्शन आपके हर बार, किये जायेंगे। बीजों को गाड़ दो अतल में कहीं, एक दिन चीरकर पत्थर आ जायेंगे। एक खोजी, अंतर मन से हो जाग्रित, टूटे हुए कलम, फिर उठाए  जायेंगे। हम थे ही कब, जो सदा ही रहेंगे, बदलते दौर की कहानी बन जायेंगे।

सरहदें

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सरहदें ये सरहदें, सरहदें हूं सरहदें ऊँची नीची, लम्बी-लम्बी कटीली, नुकिली, ये सरहदें सरहदें, ये सरहदें, सरहदें हूं सरहदें हिम से लदी अतल तक गड़ी रेत पे बिछी सागर में छुपी धरती माँ को, बाँटती सरहदें हां ये सरहदें,सरहदें हूं सरहदें खेलती है ये, खून की होलीयाँ बोलती है, अंगारों की बोलियाँ पहरेदारों के रक्त में नहाई जाबांजों के, सीने की गोलियाँ ये लाल लाल, लहु पीती सरहदें। सरहदें ये सरहदें हूं सरहदें ये  घर  आगंन; उदास गाँव  तस्वीरें को सीने से लगायी  मायें गोरी के माथे की लकीर  वो तरसती, नन्ही सी आँखें सब कहती हैं, सरहद की बातें सरहदें, ये सरहदें हूं सरहदें जब तिरंगे से लिपट के दीप से बन गये सितारे हो गये कुर्बान हँसते हँसते वो आशिक, सरहद वाले हो गये अमर, माँ के रखवाले सरहदें, ये सरहदें  हूं सरहदें तुने अर्जीयाँ, कहाँ लगाई ये मर्जीयाँ, किसको बताई किसने कि है, तेरी सुनवाई सुन ओ मेघा, सुन पुरवाई बता दे, कहाँ हैं तेरी सरहदें सरहदें, ये सरहदें हूं सरहदें आओ प्रेम का, दीप जलाएं शान्ति का, संदेश सुनाएं चलो एक, नईदुनियाँ बनाएं आओ, अमंबर हो जाएं

मैं कौन हूँ

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मैं कौन हूँ?  चंचल सी हवा बहती घटा हूँ  उजली सी! क्या ? मैं किरणें हूँ । मैं कौन हूँ?  खिलखिलाती सुबह की धूप हूँ शाम की! क्या? मैं लालिमा हूँ। मैं कौन हूँ?  खिलता फूल, बन गया बीज़ हूँ  प्रेम का! क्या? मैं अर्पित फूल हूँ। मैं कौन हूँ? नीला अम्बर, बदलता मौसम हूँ  सृजन की! क्या? मैं धरती हूँ। मैं कौन हूँ?  सूरज का तेज, चाँद की चाँदनी हूँ  अमावस का! क्या? टिमटिमाता जूगनू हूँ। मैं कौन हूँ?  निर्मल बहती नदियाँ की धार हूँ  मिलाप का! क्या? मैं सागर हूँ। मैं कौन हूँ?  शीत सागर, गंगा का निर्मल नीर हूँ  तपती! क्या? मैं रेगिस्तान हूँ। मैं कौन हूँ?  कविता का रस, गीत का संगीत हूँ  काव्य का! क्या?  मैं अलंकार हूँ । मैं कौन हूँ? कबीर के दोहे, संतों की वाणी हूँ प्रेम पुजारन! क्या? मैं मीरा हूँ । मैं कौन हूँ?   

सच को तो सिर्फ देखा जा सकता है

जो कहते हैं कि वो सच बोल रहे हैं वो उनका सच है, जो कह रहे हैं कि वो सच बेच रहे हैं वो अपना सच बेच रहे हैं, क्यों कि सच ना बोला जाता है ना ही महसूस किया जाता है। ''सच को तो सिर्फ देखा जा सकता है '' * सच तो सूरज की किरणें हैं  जिनके आने से धरती दुल्हन बन जाती है। * सच तो वो फूल हैं  जो हर सुबह सूर्य पर अपनी खुशबू, रंग और अपना सर्वस्त्र अर्पण कर देती है। *सच तो तिरंगे में लिपटा हुआ दीप है  जो बन गया  सितारा।

मेरे पिता जी

पिता  धरती पर सूर्य का रूप हैं पिता  छाँव है तपती दोपहरी में  पिता  आत्मविश्वास से भरे नसीह़त की रोशनी लिए  मेरा नव निर्माण किया। उँगली पकड़कर  दुनिया से साक्षात्कार किया। लड़खड़ाये जब भी कदम कंधों पर उठा लिया। जीत का मंत्र देकर संघर्ष के पथपर मुझे पहाड़ सा मजबूत  बना दिया। मतलबी दुनिया में  आप हिम्मत का दरिया हो परेशानियों में  दो धारी तलवार हो। असमंजस के पलों में  मैं तेरे साथ हूँ  तू ना घबराना  यह कहकर  मुझमें आत्मविश्वास भर दिया। हार जीत को मोल ना देकर  खुशियों का द्वार खोल दिया। मेरे हर दर्द में संजीवनी बूटी बनकर  मेरा दर्द मिटा दिया। पिता का साथ  जैसे महादेव का आशीर्वाद मिला।  धरती पर सूर्य का रूप हैं पिता।

चलो बापू को पढ़ते हैं

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चलो बापू को पढ़ते हैं। एक दिन नहीं, नित्य ही सत्य-अहिंसा के विचारों पर समूची दुनिया नत्मस्तक है बापू के जैसे प्रेम पथ चलते हैं। बन्धु सूत्र में विश्व को बांधे कर्तव्य परायणता धर्म मानें जन-जन के प्रेरणास्त्रोत हैं अंतिम-व्यक्ति की चेतना जगाते बापू के जैसे हम भी पहुंचते हैं। समय की सीमा से परे जन्म-मरण का चक्र तोड़े इतिहास की बोगी में बापू नर से नारायण बने बापू के जैसे महात्मा बनते हैं। दांडी की शांति यात्रा थमी अच्छाई भी राह भटकी मानवता किताबी न बन जाए हरि कहीं मूरत में न रह जाए चलो अहिंसा का बीज उगाते हैं। मानवता का प्रमाण दें भूल के सारे द्वेष धरकर बापू का भेष मन, क्रम, वचन से एक बापू के जैसे सदाचारी बनते हैं।

माँ

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माँ को परिभाषित कर सके  ऐसा कोई शब्द नहीं। ना स्याही है ना कलम है कोई कागज बना नहीं। तुम हर दिवस के पल पल में ईश्वर का साक्षात रूप हो। तुम सूरज हो हम सितारे मेरी सुबह की धूप हो। तुम्हीं धरती आसमान हो निर्मल गंगा की धारा। क्षमा, दया, करुणा, प्रेम का निर्मल,कोमल मन प्यारा। अबोध शिशु का ज्ञान तुमको उसके हर भाव समझती। दुआओं का काला टीका  छींक पे नजर उतारती। मैं तेरा पुजारी हूँ माँ , तुमको शत् -शत् नमन करें। तेरे मखमली आँचल की हमको शीतल छाँव मिलें।

करोना मुक्त भारत🙏⚘

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Thank you so much all medical staffs 🙏⚘ एक रिश्ता और भी है खुद से खुद के लिए।। मिलना जुलना तो होता रहेगा थोड़ी दूरी रखें जीने के लिए।। सब कुछ भूलकर डाॅक्टर तैनात है लड़ने के लिए।। थाली-ताली तो सब ठीक है घर पर रहो थैंक्यू कहने के लिए।। यहाँ अपना-पराया कोई नहीं तैयार है करोना फैलने के लिए।। संकल्प है सरकार के साथ हैं करोना को मिटाने के लिए।। कमजोर ना होंगे डटे रहेंगे स्वस्थ आज और कल के लिए।। हाथ बार-बार धोते रहेंगे जगह ना मिले छुपने के लिए।। सब अपना-अपना ख्याल रखें करोना मुक्त भारत के लिए।। जय हिन्द जय भारत 🙏⚘

''मत जइयो रजो राजनीति की गर्मी में,,

अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता / '' मनाली मत जइयो ,, से प्रेरित होकर लिखी गयी है। मत जइयो रजो राजनीति की गर्मी में। आवेंगें यमदूत ठिठुरती सर्दी में। सुनो सिया, बनवास से पहले, मिल आना लक्ष्मी जीजी से, फिर आवेंगे लूटेरे पंचवटी में। धरोगी पाँव जो देहरी पे, ले जाना सीख शूटर दादी से, ना आवेंगे रक्षक अंधेर नगरी में। मत जइयो रजो राजनीति की गर्मी में। आवेंगें यमदूत ठिठुरती सर्दी में। तुम चीखेगी, चिल्लाएगी, पर वो मुँह ना खोलेगी, खामोशी रहेगी शेरनी संसद में। बुलंद जो आवाज करोगी, देशद्रोही कहलाओगी, जला दी जाओगी लोकतंत्र में। मत जइयो रजो राजनीति की गर्मी में। आवेंगें यमदूत ठिठुरती सर्दी में। (लक्ष्मी जीजी-राजस्थान की रहने वाली) (शूटर दादी- उत्तरप्रदेश की रहने वाली)