माँ


माँ को परिभाषित कर सके 
ऐसा कोई शब्द नहीं।
ना स्याही है ना कलम है
कोई कागज बना नहीं।

तुम हर दिवस के पल पल में
ईश्वर का साक्षात रूप हो।
तुम सूरज हो हम सितारे
मेरी सुबह की धूप हो।

तुम्हीं धरती आसमान हो
निर्मल गंगा की धारा।
क्षमा, दया, करुणा, प्रेम का
निर्मल,कोमल मन प्यारा।

अबोध शिशु का ज्ञान तुमको
उसके हर भाव समझती।
दुआओं का काला टीका 
छींक पे नजर उतारती।

मैं तेरा पुजारी हूँ माँ ,
तुमको शत् -शत् नमन करें।
तेरे मखमली आँचल की
हमको शीतल छाँव मिलें।

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