जो इसके विपरीत कहेंगे वहीं ''झूठ " होगा।।

सच को ढूंढ रही थीं
हर किसी का सच सुन रही थीं
सच को सुनते सुनते
फिर झूठ को ढूंढने लगीं।
कि तभी
सच, झूठ के सारे परदे गिरे
और  मुझे
यथार्थ ही यथार्थ
नजर आने लगा।
हर तरफ, चारों ओर,
सड़कों पे, पटरीयों पे
जहाँ जहाँ..
पैदल चलने के मार्ग बने हैं
उसके किनारों पे
आस पास...
झुंडों में अकेले में
साइकिल से,
ट्रकों में छूप छूप के, भर भर के।
बंद घरों में
सील हुईं सीमा में।
लोगों के चेहरों और व्यवहार में।
क्यों?
आपने नहीं देखा सच
इन सभी जगहों में
आपसे मुलाकात तो हुईं होगी,
आप झूठ बोल ही नहीं सकते हैं,
क्यों कि
जो इसके विपरीत कहेंगे वहीं ''झूठ " होगा।।
धरती पे रहने वाले हर प्राणी,
हर छोटे बड़े सभी को पता है।
गंगा, यमुना
भारत की हर
नदी, झरने, तालाब
सुखे और पानी से ढबा ढब भरे हुए।
ऋतुओं को,
धरती, अंबर को
प्रकृति
पर्वत, पेड़ पौधों को भी पता है
सच का।
आज सब जानते हैं सच
जहाँ नजर दौड़ाते है
बस सच ही है।
जो इसके विपरीत
रचेगा, गढ़ेगा, कहेगा
वो छल होगा
खुद के साथ।
क्यों कि.
सच सब देख रहे हैं,
किसी से कुछ ना छूपा है।
कवि
इस सच पे कविता लिखेगें
कई कहानियाँ छपेंगीं
दर्द भरी...
आँखों को सुखा देने वाली
कानों में हर पल सुनाई देने वाली खामोशी का शोर
दिल को लहु लुहान करने वाली
इंसान और इंसान के बीच की खाई की।।
आँसूओं की कहानी
सच कभी हसाता नहीं
वो सच्चाई  दिखलाता है
बिना किसी आवाज के
सब कुछ आँखों के सामने साफ साफ।
बस मुझे डर लगता है
चालाक आदमी से
जो हर जगह अपने पोषक तत्व ढूंढ लेता है
छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी
अच्छाई में बुराई में
सच झूठ में
कहीं से भी कुछ भी
जो हमेशा सच बोलता है।
उसके सच
बहुत सुहावने है
शतरंगीय हैं
आसमानी हैं
हमेशा पंख लगाकर उड़ते रहते हैं
जमीं तो उन्होंने कभी देखी ही नहीं है।
मैं चालाक आदमी के सच से बहुत डरती हूँ।
वो आज भी सच बोलेगा
जो सदियों से बोलते आया है
सची कहती हूँ
जो इसके विपरीत कहेंगे
वहीं ''झूठ'' होगा।
सच बहुत डरावना है।
*ये जिन्दगी का पाठ है साहब
बिना सिखाये कहाँ मानेगा।


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