संदेश

दीप

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एक दीप रोशनी से भरा, दसों दिशाँ प्रकाशित करे। हर्ष और उल्लास से, नव जीवन प्रतिष्ठित करे। एक दीप उमंग से भरा, भक्ति में रंगा जो अंतर्मन तलक, निर्भय और जागृति करे। अंधकार में, आशा की किरणें उम्मीद और विश्वास की, शक्ति सदा प्रज्वलित करे। समय के  चक्र में, घटित घटनाओं में मानव के हृदय को, संताप में आनंदित करे। मेरा कोटी कोटी नमन उस दीप को उस वीर को जो जन कल्याण में अपना सर्व जीवन समर्पित करे। एक दीप रोशनी से भरा, दसों दिशाँ प्रकाशित करे। हर्ष और उल्लास से, नव जीवन प्रतिष्ठित करे।

हे ज्योतिमय संत

हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल, पतंग अंधकार में भटकता, घट-घट तुमको ढूंढता, ये बैरागी मन। अज्ञानता भरी छाया, शूल से घायल काया, नश्वर अंतर्मन। अब प्रभात पट खोलो, अंध-उर प्रकाश भर दो, हे प्रभु दयावंत। हे प्रकाश के स्वामी, हे ज्योतिमय संत। करूँ तुम्हारी वंदन, हे निर्मल पतंग।

जीवन के दिन चार

जीवन के दिन चार रे भैया जीवन के दिन चार। प्रभु नाम की माला जपना; प्रभु नाम की माला जपना कट जायें दिन चार रे भैया! जीवन के दिन चार। दो दिन दुख के दो दिन सुख के; दो दिन दुख के दो दिन सुख के बीत गये दिन चार रे भैया! जीवन के दिन चार। एक सहारा प्रभु का द्वारा; एक सहारा प्रभु का द्वारा बाकी सब बेकार रे भैया जीवन के दिन चार।।

बापू की एक मुस्कान!

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युद्ध के मैदान हजारों लाखों हैं सैनिक हथियारों का है जखेड़ा नीतियाँ है, देश-विदेशी हजारों साल पुरानी योद्धा हो या महारथी हुआ सब निराधार बेअसर, बेकार शान्त हुई ज्वाला स्थिर हुआ तूफ़ान बापू की एक मुस्कान।। पूछो माँ भारती से मेरे शब्दों में कहाँ इतनी ताकत मैं करूँ बस बापू की इबादत जहाँ हुआ असम्भव बापू हैं वहाँ सम्भव विश्व में, हर जगह शान्ती का एक नाम बापू की एक मुस्कान।। छोड़ आये जिन्हें, पन्नों में भूल गये जिन्हें, बातों में धर्मों के ऊपर एक धर्म, धामों में हैं, एक धाम सत्य, अहिंसा, और प्रेम का नहीं कोई दूसरा परिधान बापू की एक मुस्कान।। समाज की संजीवनी समझ सको तो समझो जान सको तो जान एक सुत्र में बाँधना एकता की ताकत सत्य की एक पहचान भारत की एक शान बापू की एक मुस्कान।।

हम भारतवासी!

कैसी पहचान तुम्हारी कैसे तुम भारतवासी भेद भाव का चश्मा चढ़ाए क्या तुम हो भारतवासी। सरहद के आशिक को देश के सिवा कुछ याद कहाँ माटी के लाल को अन्न के सिवा कुछ याद कहाँ शब्दों में जहर कैसा है;ओ मृदुभाषी कैसे तुम भारतवासी। पूरब के हो या पश्चिम के उत्तर के हो या दक्षिण के रहते हो सब साथ साथ लड़ते हो दुश्मन के जैसे बताओ कहाँ के तुम निवासी कैसे तुम भारतवासी। हम तुम एक हो जाएँ एक बाग के फूल हो जाएँ नफ़रत और भेदभाव को भूलकर हम सब भारतवासी हो जाएँ सत्य, प्रेम और अहिंसा के हम पूजारी हम सब हैं भारत के वासी। गुलाबों का गुलिस्ताँ बनाएँ खुशहाल रहे ऐसी दुनियाँ बनाएँ आत्मनिर्भर और विश्वगुरू हो एक ऐसा हिन्दूस्ताँ बनाएँ यही हमारा काबा यही है काशी हम सब हैं भारतवासी।

हिन्दी के महासागर

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हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं। शब्दों के हैं शब्द कई, अर्थों के भी अर्थ निकलते। स्वर व्यंजनों के रूप में, गांव की बोली समेटे। जो भी गाएं व लिखें,  हिन्दी में सुनाएं। गद्य और पद्य की विधा, समृद्धि इसको बनाए। सरल, सहज और सुगमता  सब ज्ञान-आनंद पाए। देवनागरी लिपि में, गुण इसके गाएं। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, ये है अभिमान हमारा। यूं ही जगमगाता रहे, हिन्दी का सूरज तारा। हम सब की ये चाहत है, भारत-वर्ष पाएं। हिंदी के सागर में, जब भी हम जाएं। ज्ञान-रूपी मोती से, झोली भर लाएं।

भारत भूमि

15अगस्त 1947 की रात को भारत देश नहीं भारत के लोग आजाद हुए थे। देश और देशवासियों को कुछ भी कहने और कुछ भी करने के लिए,  साथ ही आजाद हुए थे सिर्फ अपने भले के लिए।